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दिल्ली अध्यापक परिषद द्वारा संपन्न गोष्ठी इंडिया से भारत की ओर का सफल आयोजन

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प्रेस विज्ञप्ति

दिल्ली अध्यापक परिषद द्वारा संपन्न गोष्ठी इंडिया से भारत की ओर

आज दिनांक 2 अक्तूबर रविवार को आर्य समाज मंदिर पंजाबी बाग, नरेला में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के तत्वावधान में दिल्ली अध्यापक परिषद ,जिला उत्तर पश्चिम अ के द्वारा *इंडिया से भारत की ओर* विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया। बीवी

कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन व सरस्वती वंदना से हुआ। मंचस्थ सभी महानुभावों का परिचय उत्तर पश्चिम जिला अ के मंत्री श्यामसुंदर शर्मा ने कराया। साथ ही मंचासीन अतिथियों का स्वागत पुष्पमाला व सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक भेंट स्वरूप देकर किया गया।

जिले का सांस्कृतिक मंत्री वीरेंद्र आर्य ने विषय की रूपरेखा रखते हुए इंडिया और भारत के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए भारतीय और भारत की ओर पुनः लौटने के लिए लोगों को प्रेरित किया।उन्होंने अपने उद्बोधन में भारतीय मूल्यों और परंपराओं का जिक्र करते हुए इसको पुनर्जागृत करने पर बल दिया और सभी का आह्वान किया कि भारतीय जीवन मूल्यों को अपनाया जाय।इस अवसर पर दूसरे वक्ता ,दिल्ली अध्यापक परिषद के संरक्षक और पूर्व प्राचार्य जयभगवान गोयल ने अपने उद्बोधन में रामायण कालीन संदर्भ के माध्यम से भारतीय संस्कार,संस्कृति और कुशल संगठनकर्ता के रूप में भगवान श्रीराम की चर्चा करते हुए कहा कि प्रभु राम जन जन में संदेश देने के लिए ही अवतार ग्रहण किए थे।अगर सिर्फ रावण को मारने की बात होती तो नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप को जैसे मारे थे वैसा भी कर सकते थे ,लेकिन आम जीवन जीते हुए आम लोगों की तरह सारे कष्टों को झेलते हुए भी सभी प्रकार के नैतिक मूल्यों का पालन किया तथा वन गमन के क्रम में बिना अपनों की सहायता लिए वनवासी लोगों यथा बंदर,भालू ,रीछ आदि का संगठन करके रावण जैसे वीर योद्धा से लोहा लिया।उनके चारित्रिक गुणों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि माता सीता से विवाह के उपरांत उन्होंने वचन दिया कि अपने जीवन काल में एकपत्नी व्रत का पालन करेंगे, और आजीवन उन्होंने इसका निर्वहन किया,जबकि उस समय राजाओं के लिए बहुपत्नी का चलन आम था।प्रभु श्री राम ने भारतीय संस्कृति और नैतिक मानदंड का एक उदाहरण प्रस्तुत किया जो भारतीयता को दर्शाता है। आज हमलोग भारतीयता से दूर होते जा रहे हैं और इंडिया को पोषित कर रहे हैं जिस कारण पश्चिमीकरण बढ़ रहा है और कुरीति,व्यभिचार,भ्रष्टाचार,कुकृतु जैसी बातों का बोलबाला हो गया है। उन्होंने भारतीय शिल्प कला,वास्तुकला,स्थापत्य कला आदि का जिक्र करते हुए ढाका के मलमल का जिक्र करते हुए कहा कि यहां के बनकर महीन कपड़े बनाने में इतने सिद्धस्थ थे की एक थान कपड़े को एक अंगूठी से गुजारा जा सकता था,जिसे अंग्रेजों ने धीरे धीरे नष्ट कर दिया।इसलिए प्रभु राम के द्वारा स्थापित मूल्यों को पुनर्स्थापित करने की आज महती आवश्यकता जान पड़ती है। इसीलिए ऐसी गोष्ठी के द्वारा समाज को पुनर्जागृत करने का प्रयास प्रारंभ हुआ है, इसकी लौ दूर तक फैलाने में सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होनेवाली है।

     मुख्य वक्ता के तौर पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेंद्र कपूर ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत सोने की चिड़िया थी, विशगुरु का दर्जा प्राप्त था लेकिन हजार वर्ष के संघर्ष काल के कारण भारत गरीबी की चक्की में पीसने वाला देश बन गया।भारत का वाणिज्य और व्यापार में दुनिया का एक तिहाई जीडीपी हिस्सा हुआ करता था,हमारी सांस्कृतिक ,आर्थिक,वैज्ञानिक,कला,वाणिज्य ,उद्योग आदि उन्नत शिखर पर था।मसालों का उत्पादन इतना अधिक था की दुनिया भर में मसालों का निर्यात भारत से होता था।हमारी गुरुकुल परंपरा शिक्षा का मूलाधार था। उन्होंने कहा की अगर हम कंगाल होते तो कोई आक्रांता हमारे देश पर आक्रमण नहीं करता।हमारा देश इतना समृद्ध था कि हाथी का जंजीर भी सोने का बना होता था।बार बार लूट होने के बाद भी भारत पुनः खड़ा हो जाता था क्योंकि हम आयात नहीं करते थे क्योंकि हमारी ग्रामीण संस्कृति में स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता थी।आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन खुद कर लेते थे जिस कारण भारत समृद्ध और संपन्न देश था।अंग्रजों के कालखंड में हमारा पराभव अधिक हुआ क्योंकि इन्होंने हमारी संस्कृति पर चोट किया तथा मैकाले की शिक्षा पद्धति को लागू कर हमें हमारी मातृभाषा पर गर्व करने की बजाय उससे दूर हटा दिया।आज हम इंडिया पर गर्व करने लगे हैं जो अंग्रेजों का दिया गया नाम है।समय आ गया है की गुलामी के प्रतीकों से अपने को दूर रखा जाय और भारत तथा भारतीयता पर गर्व करने वाली शिक्षा बच्चों को दी जाय।

मुख्य अतिथि के रूप में राजेंद्र सिंघल जी प्रमुख सजसेवी ने अपने संबोधन में जीडीपी की गणना को अप्रासंगिक बताते हुए कहा कि भारत आज पुनः अपनी गौरव को वापस लाने की स्थिति में आ गया है। हरेक भारतीय का कर्तव्य है कि वैमनस्यता को छोड़कर समरस समाज का निर्माण किया जाय। इसी प्रयास से वसुधैव कुटुंबकम् की धारणा मजबूत होगी और भाईचारा से देश को ताकत मिलेगी। उन्होंने कहा कि आज के इस दौड़ में निश्चय ही ऐसी संगोष्ठी समाज को जोड़ने और पुनर्जागृत करने के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा।समाज के द्वारा भी ऐसी गोष्ठी की जाने का उन्होंने आह्वान किया।

जिला उत्तर पश्चिम अ के अध्यक्ष और गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे विक्रम डाबला ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में इंडिया और भारत से जुड़ा एक दृष्टांत से इंडिया में किस प्रकार खान पान,रहन रहन सहन, वेश भूषा गिरावट आ रही है उसपर प्रकाश डालते हुए भारतीयता और भारत की ओर लौटने का आह्वान किया।

इस सुअवसर पर बिटिया चहक ने भारत की विशिष्टता को दर्शाते हुए कविता पाठ करके सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। गोष्ठी में बहन अर्चना त्यागी व भारती वार्ष्णेय ने बंदे मातरम का गायन करके समापन के अवसर को यादगार बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी।

मंच संचालन का कार्य अनिरुद्ध त्यागी ने बखूबी निर्वहन किया और जिले का उपाध्यक्ष आनंद मिश्रा ने मंचस्थ सभी अतिथियों का धन्यवाद करते हुए स्थान मुहैया कराने वाले और सभा में उपस्थित सभी बहनों भाइयों का आभार प्रकट किया। इस अवसर पर गोष्ठी में परिषद के मीडिया प्रभारी सह सहायक प्राध्यापक एससीईआरटी अजय कुमार सिंह, राजकीय निकाय उपाध्यक्ष धर्मवीर शर्मा, सांस्कृतिक मंत्री संतोष राय के अतिरिक्त जिले के वरिष्ट कार्यकर्ता प्रबोध कुमार सिंह, राकेश सिंह , देवेंद्र नारायण दिवाकर आदि उपस्थित रहे।

इस अवसर पर शिक्षक और समाज के दो सौ से अधिक लोग उपस्थित रहे।

अजय कुमार सिंह

मीडिया प्रभारी, दिल्ली अध्यापक परिषद





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