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* विचारणीय *
यह समय फफोले फोड़ने का नहीं है, लेकिन एक बार फिर मेरा जी चाहता है कि कोरोना के संकट से निपटने में हमारे स्कूल कॉलेजों की पढ़ाई की व्यर्थता को कोसा जाए !
ठीक वैसे ही जैसे एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर अपने घर का फ्यूज नहीं बदल सकता, एक कंप्यूटर B Tech अपना कंप्यूटर ठीक नही कर सकता, वैसे ही हम बीएससी/ एमएससी पढ़े छात्र छात्रा अपने घर के किसी सदस्य को इंजेक्शन नही लगा सकते।
पन्द्रह बीस साल स्कूल कॉलेजों में बर्बाद करने के बाद हमें क्या मिलता है। हमारे अपनों का जीवन संकट में हो, और उससे निपटने का कोई हुनर या बेसिक ज्ञान हमारे स्कूल कालेजों ने नहीं सिखाया, तो ऐसे स्कूलों का क्या फायदा ।
क्या यह बेहतर नहीं होता, कि तमाम अल्लम गल्लम पढ़ाने के बजाय ये स्कूल हमें इस बात की ट्रेनिंग देते कि मरीज का ब्लड प्रेशर कैसे नापा जाता है, ऑक्सीजन सैचुरेशन कैसे चेक किया जाता है. ऑक्सीजन मशीन, बाई पैप मशीन कैसे लगाते हैं, नेबुलाइजेशन कैसे करते हैं या इंजेक्शन कैसे लगाते हैं !
सोचिए यदि इस तरह के कैप्सूल कोर्स कर हम कुछ कंपाउंडर तैयार कर पाते. सिविल डिफेंस में बाढ, आग, भूकंप से जिंदगी कैसे बचा सकते हैं यह सिखाया जाता. तो आफत की घड़ी में ये सचमुच समाज के काम आ सकते थे !
मगर स्कूलों ने हमें यह सब नहीं सिखाया। उन्होंने हमें टाइट्रेशन करना सिखाया, आपेक्षिक घनत्व निकालना सिखाया, डिफरेंशियल कैलकुलस पढ़ाई ! जिसकी 90% लोगों की जिंदगी में कभी जरूरत ही नहीं पड़ती.
अब इस आफत की घड़ी में हम इस सब ज्ञान का क्या इस्तेमाल करें ?
कोरोना के मरीजों की तादाद देख कर साफ है कि मजबूरन लोगों को उनके घरों पर ही अस्पताल जैसा इलाज देना होगा। वैसे भी कोरोना के मरीज को किसी किस्म की सर्जरी की आवश्यकता आमतौर पर नहीं पड़ती, इसलिए अस्पताल की उपयोगिता सिर्फ समय से इंजेक्शन लगाने और ऑक्सीजन देने, और डॉक्टर की निगरानी की है ।
कुछ मामलों में हालत बिगड़ने पर वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है, लेकिन ज़्यादातर मरीज़ ऑक्सीजन और बाई पैप मशीन के सहारे ही उठ खड़े होते हैं । बाई पैप मशीन तेजी से हवा फेंकने वाली एक साधारण मशीन है, जिसकी कीमत बमुश्किल 25 से तीस हजार है। यह मशीन प्रेशर से हवा फेंकती है जिससे मरीज को साँस लेनी ही पड़ती है। बहुत से लोग इस मशीन को खरीद सकते हैं, घर पर किराए पर लगवा सकते हैं, मगर लगाने वाले टेक्नीशियन कंपाउंडर कहाँ से लाएँगे? हमारे पास ट्रेंड कम्पाउंडर हैं ही नहीं। जो थोड़े बहुत हैं वे अस्पतालों को ही कम पड़ रहे हैं। या उन्हें स्थिति का फायदा उठाने से फुरसत नही।
मैंने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन तक की सारी शिक्षा के बारे में आज सोचा। मुझे एक भी बात ऐसी याद नहीं आई जो एक मरीज की देखभाल करने में उपयोगी हो।
💐💐 शिक्षा का मतलब उपयोगी नागरिक तैयार करना होना चाहिए, चाहे खेती हो, उद्योग हो, अनुसंधान, रक्षा या जीवन उपयोगी कार्य हो. हमारी पुरातन शिक्षा प्रणाली इसी पद्धति पर आधारित थी.
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