दिल्ली की एक शिक्षिका के अपमान करने
पर रोष प्रगट करते
मनोज तिवारी को ललकारती कविता
पर रोष प्रगट करते
मनोज तिवारी को ललकारती कविता
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जिनको वोट दिया था हमने
अच्छे दिन की आशा में
शिक्षक का सम्मान नही कुछ
उनकी ही परिभाषा में
शब्दों की धारा में अविरल
बहते गये तिवारी जी
भूल गए मर्यादा अपनी
कहते गये तिवारी जी
जनता की सेवा करने की
ये कैसी खुद्दारी है
गायक को गायक कहना
लगती इनको गद्दारी है
स्वाभिमान शिक्षक का तुमने
बिना बात ललकार दिया
भरी सभा में मातृशक्ति को
बार सैकड़ों मार दिया
जिस गाने से शौहरत पाई
उससे क्यों शर्मिंदा हो
तिरस्कार शिक्षक का करके
तुम अब तक क्यों जिन्दा हो
हम क्यों लड़ते आये अब तक
निज स्वारथ के हेठों से
बेटी तो महफूज नही अब
संसद के ही बेटों से
बेटी को हम बचा रहे हैं
लड़कर भी भगवानों से
कैसे बेटी पढेगी आगे
नेता के अपमानों से
राजनीति के गुण्डों को
तहजीब सिखा दो मोदी जी
अच्छे दिन का क्या मतलब है
ये समझा दो मोदी जी
अब तक नारी अपमानित थी
घर की चार दीवारों में
तुमने कर डाला अपमानित
खुले बीच बाजारों में
महिला दिवस मनाकर तुमने
ये कैसा सन्देश दिया
खुले मंच से महिला पर
कार्यवाही का आदेश दिया
गलत सुना था लोकतन्त्र
है आजादी अभिव्यक्ति की
मगर आज अहसास हुआ
है सत्ता दल की शक्ति की
लगता है अब जनसेवा के
सपने सारे दूर हुए
इसीलिए औकात भूल तुम
सत्ता मद में चूर हुए
वक़्त सिकन्दर है सांसद जी
शायद ये तुम भूल गए
इसीलिए सब हदें पार कर
निम्न भाषा अनुकूल गये
संस्कार की कमी कहूँ या
सत्ता का अहंकार इसे
पूर्वाग्रह का अक्स कहूँ या
लोकतन्त्र की हार इसे
लेकिन ये जो कुछ भी है
अंजाम बुरा इसका होगा
सपनों में ना सोचा था
वो नाम बुरा इसका होगा
आने वाले चन्द दिनों में
इसका एहसास करा देंगे
कितनी औकात तुम्हारी है
ये तुमको याद दिला देंगे।।
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