कुंठित जन - प्रतिनिधि
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है एक गवैया जन -प्रतिनिधि जो
रहता कुंठित ऐंठा - ऐंठा ,
गली - गली जो गाता था
अपनी औकात भुला बैठा ।
सत्ता के मद में चूर हुआ वो
जन- गण - मन को क्या जाने ,
भूला शिष्ट आचरण को
मर्यादा कैसे पहचाने ।
जो इधर - उधर नाचा करता था
सम्मान भला वो क्या जाने ,
जिसका खून हुआ पानी
वो शिष्टाचार को क्या जाने ।
वह , शिक्षक को आँख दिखाता है
जिसने उसको भी ज्ञान दिया ,
संस्कार सब भूल गया
मातृशक्ति का अपमान किया ।
शिक्षक समाज है स्वार्थ - रहित
उनको जो मान नहीं देगा ,
"भावुक" कहते उस नेता को
सत्ताच्युत जन - मन कर देगा ।
अवधेश तिवारी "भावुक"
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