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स्कूलों में चल रहे माहौल से खुब्ध कवियों के मन से शब्दों द्वारा निकला दर्द।

स्कूलों में चल रहे माहौल से खुब्ध कवियों के मन से शब्दों द्वारा निकला दर्द। 

कविता 1 


सत्ता देकर की है गलती
जनता ने माचिस की तिल्ली को ।
पाँच साल में भस्म करेगी
वो तिल्ली पूरी दिल्ली को  ।।
                        दिलदार बने दिल्ली वालों ने
                        जिसपे दिल को खोल दिया 
                        उसी शहर के रखवाले ने
                        जहर शहर में घोल दिया ।।
गाली देते बच्चे को भी,
पुचकार ज्ञान हम देते हैं ।
अभिभावक की डाँट हमेशा
सकदम हो सह लेते हैं ।।
                 उसको तुमने अनदेखी की
                 दिखा तुम्हें बच्चों का प्यार ।
                 तुम क्या जानो बहती है
                 विद्यालय में कब कौन बयार???
आओ फिर समझाएं तुमको
किसको हम पढ़ाते हैं ।
सुबह शाम और दोपहर भी
स्मैक चढ़ा जो आते हैं ।
                   कुछ बच्चों के खातिर 
                   आखिर पूरी कक्षा रोती हैं,
                   डिस्टर्बिंग बच्चों के कारण
                   जब पढाई न होती है ।।
उन नशाखोरों से आखिर 
कैसे अब निपटा जाए ??
सुधरेगा कैसे वह बच्चा
शिक्षक जिसे डांट न पाए ।।
                    बड़े बड़े इश्तिहार डालकर 
                    मूरख किसे बनाते हो ?
                    कभी एक माह शिक्षक बनकर
                    उन बच्चों को पढ़ाते हो ??
तुम पब्लिक स्कूल की तुलना
सरकारी से करते हो,
कभी सोचकर ये भी देखो
बच्चे कौन से भरते हो ????
                   पब्लिक स्कूल के बच्चे तो क्या
                   माँ बाप भी उसके पढ़ते हैं ,
                   हर पल हर क्षण हर दिन हरदम
                   बच्चों को वो गढ़ते हैं ।।
झुग्गी स्लम से उठकर बच्चे
जब बिना नहाए आते हैं ,
उन बच्चों को भी हम
अपना बना पढ़ाते हैं ।।
                  उन बच्चों के अभिभावक का
                 भी कुछ करतब बनता है ,
                 तुम क्या कभी सोचते उनकी
                 वो भी तेरे जनता हैं ।।

सोचों उनको भी समझाओ

चाहो तो तुम उन्हें पढ़ाओ,

                   वो घर में गर सुधर गए और

                  अपना कर्तव्य निभा देंगे,
                  वादा करते हम शिक्षक भी
                  कोयला को हीरा बना देंगे ।।

कोयला को हीरा बना देंगे ,

कोयला को हीरा बना देंगे ।।
                     पर डर के माहौल बना तुम
                     शिक्षक को डराते हो ।
                     अज्ञान तिमिर से जूझ रहे
                     ज्ञान राशि को हराते हो !!
शिक्षक ही वह तेज तीर है
जो ज्ञानी तुम्हें बनाया है,
उसके छाती पर ही तुमने 
अग्निबाण चलाया है ।।
                 तापस के तप को मत भेदो
                 कुल कलंक मत कहलाओ,
                  ज्ञानमार्ग के साधक को तुम,
                  राजनीति मत सिखलाओ ।।
अब भी ना चेते तुम सब तो
इतिहास स्वयं दुहरायेगा ,
अबकी बार पर एक नहीं
अनेक चाणक्य बन जायेगा ।

अबकी बार पर एक नहीं

अनेक चाणक्य बन जायेगा ।।

साभार..


 डाॅ.  संजीत कुमार झा




कविता 2


कल तक जो थे पक्के चोर ,
आज बने हैं वो सिरमौर ,
जो दम पर हमारे बैठ गये,
अब अहंकार में ऐंठ गये।
भूल गया अपनी औकात, 
मार रहा है पेट पर लात।
सत्ता के मद फूल गए,
अपने कर्त्तव्य को भूल गए।
आए थे जनता के बल पर,
तानाशाही में झूल गए।
आज हमें भरमाते हो,
तनिक नहीं शरमाते हो।
लूटपाट पर उतर आए,
लाखों के बोर्ड लगा खाए।
नये तरीके अपनाने को,
जनता को मूर्ख बनाने को।
कहीं केमरे ,एस्टेट मेनेजर,
बिल रिवार्ड, कहीं फंड ट्रांसफर।
शिक्षक शक्ति को कम न आँक,
थोड़ा अपने अंतर में झाँक।
सैलाब किसी दिन आएगा,
अकेला बैठ पछताएगा।
तेरे टकले को सुजा देंगें,
तेरी ईंट से ईंट बजा देंगें।
अपने समय का ध्यान तू कर,

शिक्षक का सम्मान तू कर।

(कवि का नाम पता नहीं) 




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