"शिक्षक की दास्तां" - एक शिक्षक की कलम से
नया सत्र प्रारंभ हो चुका था। सोचा था कि इस साल बच्चों को जी भर के पढाएंगे।प्रार्थना के पश्चात मैं रजिस्टर ले कर छटी कक्षा में पहुँची। सभी बच्चे स्कूल में नए थे।मैंने अभीे दो ही बच्चों का नाम बोला था कि एक बच्चे की माँ मेरे पास आ कर बोली ,"मेरी बेटी आरती को अब तक किताबें नहीं मिली हैं? "मैंने पूछा," उस का दाखिला कब हुआ था", उस ने बताया "कल। ''।मैंने उस का नाम रजिस्टर में चैक किया पर मुझे नहीं मिला। मुझे लगा कि नाम लिखनेे में मुझ से गल्ती तो नहीं हुई है ।मैंने प्रवेश रजिस्टर से चैक किया पता चला उस बच्चे का सैक्शन ही अलग है। आरती की माँ को दूसरे सैक्शन में भेज कर मैने फिर हाजिरी लेनी शुरू की ,अभी रोल नम्बर पाँच पर ही थी कि एक बच्चे के पिता आ गये ,"जी मैडम जी, हमारी सीमा का जन्मतिथि लिख कर दे दो हमारी बेटी का आधार कार्ड बनेगा।" मैंने थोड़ी देर इन्तजार करने को कहा ताकि हाजिरी ले सकूँ।मैने बड़ी मुश्किल से हाजिरी पूरी की।50रोल नम्बर तक आते आते गला चरमराने लगा ।तभी सफाई कर्मचारी आई औऱ उस ने कहा "जल्दी बाहर आ जाओ सफाई करनी है।"बच्चो को जल्दी से बाहर किया ही था कि मुझे लगा कि बच्चों के हाथों में किताबें मुझे घूर रही हैँ अन्दर से आ रही मिट्टी मेरे करियर पर मिट्टी भर रही थी । तब तक सीमा के पिता की सीमा का बाँध टूट चुका था।तुरंत मै आफिस गई, लैटर हैड पर बच्चे का नाम, पत्ता, जन्मतिथि आदि लिख कर मोहर लगा प्रिन्सिपल से साइन करवाने के लिए अपना चेहरा ऊपर उठाया तो देखा, प्रिन्सिपल मैम कुर्सी पर नहीं थी।इतने में एक औऱ बच्चा मेरे पास आया "मैम हमारी क्लास में आप का पीरियड है प्रिन्सिपल मैम क्लास में हैँ "। काम करते हुए पता ही नहीं चला ,घंटी कब की बज चुकी थी ।मैं जल्दी जल्दी क्लास की औऱ दौड़ी। जब तक मैं पहुँची प्रिन्सिपल वँहा से जा चुकी थी।मैंने अपने माथे पर अपना हाथ मारा, तभी सीमा के पिता पीछे -पीछे मेरी क्लास में पहुँच चुके थे।मैंने बच्चों को काम करने को दिया, बस मैं एक मिन्ट मेंआती हूँ कह कर मैं तुरंत आफिस की ओर भागी तब तक मैम को अविभावकों ने घेर रखा था।किसी मुद्दे पर गर्म बहस चल रही थी।मैंने तुरंत पेज आगे सरकाया--मैंने क्या बोला मैम ने क्या समझा, कुछ नहीं पता ।बस उन्होंने साइन किये मैंने तुरंत उसे सीमा के पिता को दिया ।
मैं जल्दी जल्दी क्लास की ओर जाने लगी ,दो बच्चे भागते हुए मेरे पास आए और रजिस्टर में साइन करने को कहा-- कितने बच्चों के बैंक अकाउंट खुले हैं और कितनों के नहीं,जल्दी से लिख कर साइन कर दो और हमारी मैम से फार्म ले लो। मैंने साइन कर इन्चार्ज से बैंक फार्म ले लिए ।
जो मुझे कल तक भर कर देने थे । मैं फिर छटी क्लास में गयी बच्चों को कल दो दो पास पोर्ट साइज़ फोटो लाने के लिए समझाया। अभी बच्चों ने सिर तो हिला दिया ,कल क्या लाएंगे इस का कल पता चलेगा।तब तक दूसरी घन्टी भी बज चुकी थी।गला सूख चुका था।
सोचा काम शुरू करने से पहले एक कप चाय पी लूँ ।अभी एक घूंट ही भरा था कि सी .बी .एस .ई. इन्चार्ज ने एक बड़ी सी लिस्ट हाथ में थमायी ,"पहले इसे चैक करो बाद में कोई और काम करना ,आप अपना एबसंटी लगवा लो।"इतना सुनते ही चाय भी ठंडी हो गई।
रिकॉर्ड निकाल कर लिस्ट चैक करने लगी। बीच में दो बार और आर्डर रजिस्टर आया मैंने बिना पढ़े ही साइन कर दिये। लिस्ट का डाटा चैक करते करते पता ही नहीं चला ,कब आठवें पीरियड की घंटी बज चुकी थी।सिर घूम रहा था ।मैंने लिस्ट थमायी ,पर्स उठाया और घर आ गयी।सारी रात आँखों के सामने वही बैंक फार्म घूमते रहे। क्या कल सारे फार्म पूरे होंगे या नहीं। बच्चे फोटो लाए होंगे या नहीं।
अगले दिन जैसे ही स्कूल में पहुंची न जाने कितने बच्चों के पेरंटस आए हुए थे।
सब की अपनी अपनी समस्या थी ,कोई फैमिली फोटोग्राफ लाया था तो कोई बहुत छोटी उम्र की फोटो।
दस बारह बच्चे ही थे जो सही फोटो लाए थे ।
लगभग तीन पीरियड फोटो पर ही बीत चुके थे।अब फार्म भरने शुरू किए थे कि मेरी क्लास से एक बच्चा बीमार हो चुका था।उसे तेज बुखार हो गया था । जल्दी से उसके घर फोन किया ।एक एप्लीकेशन लिखवायी माँ से साइन करवाए प्रिन्सिपल मैम से साइन करवाए,गार्ड को दिखा कर उसे घर भेजा। किसी तरह से दस फार्म ही पूरे भर कर दिए। काम करते करते दो और आर्डर आ चुके थे पता ही नहीं क्या लिखा था मैंने साइन कर दिये । कल किस तरह ये काम पूरा करूंगी,मैं बस यही सोच रही थी।
आज क्लास शुरू हुये पंद्रह दिन हो चुके थे ।बच्चे पूछ पूछ कर थक चुके थे "आज आप पढाओगे"।मैं रजिस्टर डाटा और किताबें , वर्दी और सफाई में खोई रही । आज मैंने किताब निकालने को कहा।क्लास में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।बच्चों को अब विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं उन्हें पढ़ा भी सकती हूँ और आज कोई भी बच्चा किताब नहीं लाया था।तभी एक बच्चे ने कहा ,"मैम आप पढाते भी हो ।" पता नहीं ये आँखें क्यों धोखा दे गई ,कहाँ से दो आसूँ आँखों से बह निकले।
सतनाम कौर
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