शिक्षा की दुर्दशा या शिक्षकों की दुर्दशा कौन लेगा जिमेदारी ?????????????
अपनी राय अवश्य दे ?
आजकल शिक्षा - शिक्षकों के सुधार के बहुत कार्यक्रम चल रहे है, नेतागण ,अधिकारी स्कूल चेक कर रहे है ,और रोज अख़बारों में fb पर ,मीडीया में ख़बर आ रही है , कि फलाना स्कूल चेक हुआ और बच्चों से ये पूछा ,स्कूल में सफाई देखी , इत्यादि , इसी क्रम में उपमुख्यमंत्री जी ने पिछले सप्ताह एक स्कूल में निरीक्षण किया और फोटो अख़बार में छाप दिया गया
अब विचारणीय प्रश्न ये है कि ऐसा करके समाज में, लोगों को, अभिभावकों को क्या सूचना और संदेश दिया जा रहा है ? यही कि सरकारी स्कूल के अध्यापकों को विषय का ज्ञान नही है ? उनको हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, आदि नही आती ? या वो अपना उत्तरदायित्व नही निभा रहे ।
बड़ा विरोधाभास है…. एक तरफ सरकार कहती है कि सरकारी स्कूल में नामांकन बढ़े, ज्यादा बच्चे जुड़े, कोर्ट में केस दाखिल किये जा रहे है कि सरकारी स्कूल में अफसरों के बच्चे पढाई करें और दूसरी तरफ शिक्षकों की गरिमा और मर्यादा और उनके ज्ञान को धूमिल किया जा रहा है, ऐसी खबरे आने के बाद अभिभावक गण और समाज में ये सोच पनपेगी कि मास्टरों को कुछ नही आता, "मास्टर" यही शब्द अब संबोधन का जिन्दा रह गया है और गुरु जी जैसे लफ्ज गायब है l मास्टर नाई भी ,और दर्जी भी होता है
एक सोचनीय पहलू ये है ,कि अधिकारी गण या हमारे मुख्यमंत्री ,उपमुख्यमंत्री किस उद्देश्य से निरीक्षण करने जाते है ? अपनी अफसरी दिखाने ? अपनी नेता गिरी चमकाने ,अध्यापकों को नीचा दिखाने ? उनको अपमानित करने ? अपना रौब दिखाने ? उनको फटकार लगाने ?
निंदनीय है ….
नकारात्मक है ….
गलत है ….
होना तो ये चाहिए कि शिक्षकों और बच्चों को प्रेरित करना चाहिए, उनमें , एक जोश भरना चाहिए, कोई कमी दिखे भी तो शिक्षकों और बच्चों में सकारात्मक उर्जा भरनी चाहिए, अपमानित करने से तो शिक्षक निराश हो जायेगा,
अच्छा, इन अधिकारियों और नेताओ के प्रश्न भी अजीबो गरीब होते है जिसका उद्देश्य सुधारवादी नही, आलोचक द्रष्टिकोण लिए होता है ताकि शिक्षक की गलती नजर आये बस, और हम अपना रौब दिखाए,
एक बड़े पदासीन ने लेफ्टिनेंट शब्द पुछा , शिक्षक से, क्योकि ये भी अप्रचलित शब्द है ,और लेफ्टिनेंट अंग्रेजी में lieutenant लिखा जाता है l
हिंदी में तो और भी कठिन शब्द है जो भ्रमित करते है, और किताबों में अख़बारों में गलत वर्तनी ही प्रचलित है जैसे उपरोक्त शब्द मिलता है सही शब्द उपर्युक्त की जगह, कितने लोग जानते है कि कैलाश शब्द गलत है और कैलास सही, दुरवस्था सही है दुरावस्था गलत, सुई नही सूई शब्द सही है, अध: पतन को अधोपतन लिखा जाता है , हिंदी भाषा की सही वर्तनी पूरे भारत में ही गिने चुने लोग सही लिख पायेगे, दो किताबो में एक में दोपहर सही शब्द माना है और एक ने दुपहर, भगवान जाने स्थाई शब्द सही है या स्थायी ?दवाई शब्द तो होता ही नही है, सही शब्द या तो दवा है या दवाइयाँ, दुकानों पर लिखा मिष्ठान शब्द गलत है क्योकिं सही शब्द मिष्टान्न है,
कोई भी व्यक्ति पूर्ण नही होता और कोई भी शिक्षक सर्वज्ञ नही होता, चाहे कितना भी कोई स्वाध्याय कर लें, शादी न करें, घर से कम निकलें , शादी विवाह मृत्यु त्योहार आदि में जाना बन्द करके कोई टीचर सारी जिन्दगी पढ़ाई करें फिर भी किसी न किसी प्रश्न पर वो अटक जायेगा क्योकि विषय और ज्ञान कोष अनन्त है
सरकारी स्कूल का अध्यापक कोई भी हो, वो बुद्धिमान अवश्य होगा, उसका कारण साफ़ है, वो 10 परीक्षाए पास करके शिक्षक बनता है, बीए, MA.BEd,JBT ,CTET ,HTET और भी जाने क्या क्या , फिर teacher के लिए प्रतियोगिता परीक्षा, सिर्फ क्रीम क्रीम प्रतियोगी ही अध्यापक बन पाते है,
कुछ हद तक शिक्षक स्वाध्याय नही कर रहा, जिसकी जिम्मेदारी समाज और शिक्षा विभाग की है, आम इन्सान को नही पता कि सरकारी शिक्षक के हिस्से में 40% बाहरी कार्य है, 40% लिखा पढ़ी और सिर्फ20% शिक्षण कार्य है,
बाहरी कार्य से मतलब शिक्षक शहर में घूमता है, उसको स्कूल परिसर में बैठने का वक्त नही, जनगणना, पल्स पोलियों, चुनाव, और सबसे बड़ा कार्य blo का , घर घर में घुमते रहो, फिर आये दिन ट्रेनिंग, मीटिंग ,नामांकन के लिए द्वार द्वार घूमो, छात्रवृति वाले काम के लिए बच्चों और अभिभावकों से आय प्रमाण पत्र और अब तो जाति प्रमाण पत्र बनाने की जिमेदारी भी ,और एक महान कार्य शिँघस्थ जैसी जगह पर जूते चप्पल की निगरानी , वृक्षारोपण अभियान में पेड़ लेने भागो, निशुल्क पाठ्य पुस्तक लेने भागो, रैलियां, आये दिन बैंक का काम, अध्यापक स्कूल में 2 मिनट चैन की सांस नही ले पाता है,
30 दिन में 60 डाक स्कूल से आती जाती रहती है, बच्चों की पढ़ाई गयी भाड़ में, रोजाना नई नई सूचनाये विभाग मांगता है और तरह तरह की यू सी किसी स्कूल में कमरा office निर्माण कार्य आ जाए तो समझों 6 महीनेे गये, स्कूल में कोई पढाई नही होगी, कभी पोषाहार की डाक जाती है तो कभी छात्रवृति की, कभी dise बुकलेट भरो तो अनीमिया गोलियों की डाक, स्कूल आकर कोई आम इन्सान देखे तो पता चलेगा कि सरकारी स्कूल डाक खाना है,
शिक्षक स्वाध्याय कैसे करे? क्यों करे ? इस अजीबोगरीब माहौल में ? और पढ़ाई चाहिए भी
शिक्षक भी इन्सान है, मीडिया भी बस आदर्शवाद का ढकोसला करता है,
किसी बच्चे ने चाहे खुद ही खुद को चोटिल कर दिया हो लेकिन बड़े बड़े अक्षरों में खबर छपेगी
"शिक्षक ने पीटा"
"शिक्षक की करतूत,
कोई भी शिक्षक स्कूल में बैठकर समय व्यतीत नही करता कुछ एकाध के होने से सारा शिक्षक समाज नकारा कैसे ??????
बच्चों को उनके माँ बाप भी पिटाई करते है, शिक्षक राक्षस नही है, अगर कोई एक शिक्षक गलती करता है तो पूरा शिक्षक समुदाय गलत सिद्ध नही हो जाता, पढ़ाई कोई घुट्टी नही है कि बच्चे का मुँह खोला और 2 बूँद डाल दी, अनुशासन के लिए भय भी जरुरी होता है, मीडिया को बहुत शौक है सच छपने का तो किसी सरकारी स्कूल में कुछ दिन काट कर आये, देखे शिक्षक की दोहरी तिहरी जिम्मेदारी और माहौल
एक शिक्षक
(लेखक का नाम पता नहीं)
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